लेखांकन का परिचय (Introduction of Accounting )

बेसिक्स ऑफ अकाउंटिंग ( Basics of Accounting )

Chapter . 1

लेखांकन का परिचय (Introduction of Accounting )

1 . परिचय ( Introduction )

लेखांकन का उद्देश्य संस्थान में होने वाली प्रत्येक गतिविधियों और वितीय सम्बंधित लेन-देनों को record करना है | यह वितीय लेन-देनों की Recording , सारांश और कंपनी के वितीय लेनदेनों का विश्लेषण करने की प्रणाली है |

लेखांकन में लेनदेन को रिकॉर्ड करने के लिए दो आधार है : Accrual Basis ( उपार्जन आधार ) और Cash Basis ( नकद आधार ) | दोनों के बीच का मुख्य अंतर timing of transaction recording ( लेनदेन का वो समय जब लेनदेन किया गया हो ) से है |

2 . लेखांकन के सिध्दांतो का अन्वेषण ( Exploring the Concepts of Accounting )

कंपनी का लेखा – जोखा तैयार करने के लिए निम्नलिखित लेखा सिंध्दांतो का उपयोग किया जाता है :

  • अस्तित्व सिध्दांत ( Business Entity Concept )
  • द्विपक्षीय सिध्दांत ( Dual Aspect Concept )
  • लेखा अवधि सिध्दांत ( Accounting Period Concept )
  • लागत का सिध्दांत ( Cost Concept )
  • मुद्रा मापन सिध्दांत ( Money Measurement Concept )
  • निरंतरता का सिध्दांत ( Going Concern Concept )
  • उपार्जन का सिध्दांत ( Accrual Concept )
  • अगम व्यय मिलान का सिध्दांत ( Matching Concept )

2.1   अस्तित्व सिध्दांत ( Business Entity Concept )

व्यापार इकाई अवधारणा में व्यवसाय और व्यवसाय का मालिक अथवा मालिकों को दो अलग – अलग  इकाई माना गया है | अर्थात संस्थान और संस्थान के मालिकों या मालिक , दोनों की अलग – अलग पहचान ( Identity ) है |

2.2   द्विपक्षीय सिध्दांत ( Dual Aspect Concept )

जब व्यापार में माल ख़रीदा जाता है तो दोहरी लेखा प्रणाली के अंतर्गत current liability के रूप में लेनदार और current assets के रूप में inventory में प्रविष्टि ( Entry ) की जाती है |

2.3  लेखा अवधि सिध्दांत ( Accounting Period Concept )

सामान्यत रूप से व्यवसाय में लेखा अवधि एक वर्ष की होती है | इस तरह के विभाजन से व्यापार की प्रगति को मापा तथा उसकी तुलना की जा सकती है |

2.4  लागत का सिध्दांत ( Cost Concept )

लागत का सिध्दांत परिसम्पतियों ( Assets ) को उसकी लागत पर ( परिवहन , अधिग्रहण , स्थापित करने का खर्च आदि शामिल करके ) खातों की पुस्तकों में दर्ज करने की मांग करता है ना कि बाजार मुल्य पर |

2.5  मुद्रा मापन सिध्दांत ( Money Measurement Concept )

मुद्रा मापन सिध्दांत के अनुसार , केवल वही लेन – देन खाते में अंकित किये जाते है जिनको मुद्रा यानि पैसे के रूप में मापा जा सकता है |

2.6  निरंतरता का सिध्दांत ( Going Concern Concept )

निरंतरता का सिध्दांत या अवधारणा का तात्पर्य है कि व्यापार इकाई भविष्य में अपने संचालन जारी रखेगी और किसी भी कारण से परिचालन को समाप्त करने या बंद करने के लिए बाध्य नहीं है |

2.7  उपार्जन का सिध्दांत ( Accrual Concept )

उपार्जन के सिध्दांत के अनुसार किसी भी व्यवसाय में आय या व्यय को उसी समय आँका जाता है जब वह सौदा (Transaction) होता है और वास्तविक पैसे के आने या जाने से मुक्त रहता है |

2.8  मिलान का सिध्दांत ( Matching Concept )

यह अवधारणा विशेष रूप से अर्जित राजस्व को खर्च किये गए खर्चो के साथ मिलान करने के लिए संदर्भित करती है | इसके अंतर्गत एक वितीय वर्ष ( लेखा अवधि सिध्दांत ) में प्राप्त होने वाली आय का मिलान उसी अवधि में भुगतान किए गए व्ययों ( उपार्जन के सिध्दांत ) से किया जाता है |

  1. लेखांकन में प्रयुक्त मुख्य पारिभाषिक शब्द ( Important Accounting Terms )

3.1  लेखांकन ( Accounting )

जब किसी संगठन , कंपनी अथवा संस्थान में होने वाली गतिविधियों अथवा रोजमर्रा के लेन – देनों का लेखा – जोखा तैयार किया जाता है तो उसे लेखांकन (Accounting ) कहा जाता है |

3.2  बहीखाता ( Book Keeping )

बहीखाता लेखांकन ( Accounting ) का एक हिस्सा है , वितीय लेन – देनों को एक व्यवस्थित तरीके से रिकॉर्ड करने और खाता बही में वर्गीकृत करने की प्रक्रिया को book keeping कहा जाता है |

3.3  पूंजी ( Capital )

सामान्य तौर पर , एक व्यवसाय को शुरू करने या चलाने के लिए व्यापार में निवेश की गई या लगाई गई धनराशि को पूंजी कहा जाता है |

3.4  परिसम्पतियाँ ( Assets )

किसी व्यवसाय में अंगीकृत वस्तुएं जिन्हें नकदी में बदला जा सकता हो , उनको परिसम्पतियाँ कहा जाता है |

परिसम्पतियों को निम्न भागों में बांटा जा सकता है :  

  • स्थाई सम्पतियाँ ( Fixed Assets )
  • चालू सम्पतियाँ ( Current Assets )
  • मूर्त सम्पतियाँ ( Tangible Assets )
  • अमूर्त सम्पतियाँ ( Intangible Assets )
  • क्षयकारी सम्पतियाँ ( Wasting Assets )

3.5  देयताएं ( Liabilities )

देयताएं वो दायित्व होते है जो व्यापार के संचालन की गतिविधियों से उत्पन्न होते है |

देयताएं दो प्रकार की होती है :

  1. दीर्घकालिक / गैर – वर्तमान देयताएं ( Long Term / Non Current Liabilities )
  2. अल्पकालिक / वर्तमान देयताएं ( Short Term / Current Liabilities )

3.6  देनदार ( Debtors )

संस्थान द्वारा बेचे गये माल अथवा सेवा की राशि का भुगतान जिन ग्राहकों पर बकाया है ऐसे ग्राहकों को देनदार कहते है |

3.7   लेनदार ( Creditors )

संस्थान द्वारा ख़रीदे गये माल अथवा सेवा प्राप्ति की राशि का भुगतान जब नहीं किया गया हो , तब जिनसे माल ख़रीदा गया है वो लेनदार कहलाता है |

3.8  आय ( Income )

संस्थान द्वारा किसी अवधि के दौरान ( लेखा अवधि ) अर्जित किये गये लाभ को आय कहते है |

3.9  व्यय ( Expense )

व्यवसाय में माल के उत्पादन और उसे बेचने तक के खर्च अथवा सेवा देने में हुए खर्च को व्यय कहते है |

व्यय दो प्रकार के होते है |

  1. प्रत्यक्ष व्यय ( Direct Expenses )
  2. अप्रत्यक्ष व्यय ( Indirect Expense )

3.10  क्रय ( Purchase )

संस्थान में उत्पादन व अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए सामग्री का अधिग्रहण करने की प्रक्रिया को क्रय कहते है |

3.11  विक्रय ( Sales )

वह सामग्री या उत्पादित माल जो ग्राहकों को बेचा जाता है , फिर चाहे वो नकद में हो या उधार , उसको विक्रय कहते है |

3.12  आगम ( Revenue )

टैक्स की कटौती से पूर्व की गई आय को आगम कहते है |

3.13  लेनदेन ( Transaction )

कोई भी व्यवसायिक गतिविधि जिसमे पैसा ,माल या सेवा का दो पक्षों में अथवा दो खातों में अंतरण हो ,उसको लेनदेन कहते है |

3.14  छूट ( Discount )

माल या सेवा के दर में की गई कमी छूट कहलाती है |

छूट दो प्रकार की होती है |

  1. व्यापारिक छूट
  2. नकद छूट

3.15  डेबिट ( Debit )
वह लेन-देन , जिससे व्यापार अथवा व्यवसाय की सम्पति में बढोतरी हो या दायित्व में कमी हो , तो इस प्रकार के लेन-देन debit कहलाते है |

3.16  क्रेडिट ( Credit )

वह लेन-देन जिससे संस्थान / व्यवसाय की सम्पति में कमी हो या दायित्व में बढ़ोतरी हो , तो इस प्रकार के लेन-देन credit कहलाते है |

4 .  विनिमय विपत्र ( Bill of Exchange )

एक मद ( आदेशक – Drawer ) द्वारा किसी दुसरे मद ( आदाता – Drawee ) को या तो मांग पर या किसी निश्चित तारीख / तिथि को माल या सेवाओ हेतु एक निश्चित धनराशि का भुगतान करने का लिखित में तथा शर्तो के साथ आदेश होना विनिमय विपत्र कहलाता है |

  • परिचालन व्यय ( Operating Expenses )
  • बिक्री के लिए उपलब्ध माल की लागत ( Cost of Goods Available for Sales )
  • शुध्द लाभ ( Net Profit )
  • सकल लाभ ( Gross Profit )
  • कीमत स्तर ( Price Level )
  • डूबत ऋण ( Bad Debts )
  • द्वि – अंकन ( दोहरी प्रविष्टि ) प्रणाली ( Double Entry System )
  1. खाते और खातो के प्रकार ( Accounts and Types of Accounts )

खाते दो प्रकार होते है :

  1. वैयक्तिक खाते ( Personal Accounts )
  2. अवैयक्तिक खाते ( Impersonal Accounts )
  3. रोजनामचा ( Journal )
  • विशेष रोजनामचा ( Special Journal )
  • सामान्य रोजनामचा ( General Journal )
  1. रोजनामचा में लेन-देन को दर्ज करना ( Recording a Transaction in a Journal )
  2. मिश्रित प्रविष्टि / यौगिक प्रविष्टि ( Defining a Compound Journal Entry )

कई खातों को प्रभावित करने वाले व्यवसायिक लेन-देन की एक जर्नल प्रविष्टि ( Journal Entry ) की जाती है जिसको मिश्रित प्रविष्टि / यौगिक प्रविष्टि (Compound Journal Entry ) कहते है | इस प्रकार की प्रविष्टि (Entry ) में कई Debit और Credit का combination हो सकता है |

  1. खाता बही ( Ledger )

बही खाता , वो होता है जिसमे व्यवसाय के सभी लेन-देन को स्थाई रूप में अभिलेखित , वर्गीकृत ( classified ) किया जाता है |

आमतौर पर , भारत में सभी विभिन्न स्थानों पर मानकीकृत है जो निम्न प्रकार है :

  1. तिथि ( Date )
  2. विवरण ( Particulars )
  3. रोजनामचा फ़ॉलियो ( Journal Folio )
  4. धनराशि (Amount )
  5. रोजनामचा और बहीखाता में अंतर ( Difference between Journal and Ledger )
रोजनामचा बहीखाता
सभी व्यावसायिक लेनदेन पहले Journal Entries द्वारा प्रथम प्रविष्टि ( Entry ) के रूप में दर्ज किए जाते है | बहीखाता एक प्रमुख पुस्तक है जिसमे Journal में दर्ज लेखा प्रविष्टियों ( Entries ) को अलग किया जाता है और उनसे सम्बंधित खातों में post किया जाता है |
रोजनामचा ( Journal ) मूल प्रविष्टि ( Entry ) की पुस्तक है और इस प्रकार खाता बही से पहले है | बहीखाते ( General Ledger ) में Journal Entry के बाद में Posting की जाती है |
रोजनामचा , Ledger तैयार करने के लिए आधार खाता पुस्तक है | Ledger , Trial Balance और वितीय विवरण ( Financial Statements ) के लिए आधार खाता पुस्तक है |
Journal को Column Format में तैयार किया जाता है , जिसमे Debit और Credit के Column होते है | बहीखाता ‘ T ‘  प्रारूप में तैयार किया जाता है , Debit बाई ओर तथा Credit दाई ओर Post किया जाता है |
रोजनामचा में लेन-देन की प्रविष्टि ( Entry ) को काल क्रम के अनुसार दर्ज किया जाता है | बहीखाता में तारीख वार और खाता वार अभिलेख करते है |

 

  1. बहीखाता में लेन-देन दर्ज करना ( Posting of Transaction to a Ledger )

रोजनामचा में किये लेखा जोखा वाले खातों से सम्बंधित लेनदेन करने के लिए बहीखाता में अलग खाता खोलें |

लेनदेन की तिथि को दिनांक वाले खाने में दर्ज करे |

बहीखाता के Credit मद में रोजनामचा के Debit लेनदेन की Posting करे | बहीखाता के Debit मद में शब्द  “To” से प्रारम्भ करते है |

बहीखाता के Debit मद में रोजनामचा के Credit लेनदेन को Post करें | बहीखाता के Credit मद में शब्द “By” से प्रारंभ करते है |

Ledger Folio में उस रोजनामचा का पृष्ठ संख्या अंकित करें जहाँ से प्रविष्टि ( Entry ) को बहीखाते में Posting किया गया है |

रोजनामचा में लेनदेन की राशि Amount को Debit या Credit में अंकित करें |

  1. खाते में संतुलन ( Balancing Ledger Account )

किसी खाते ( Ledger ) के दोनों ओर (Debit और Credit ) के योग के बीच के अंतर को balance कहा जाता है |

  1. तलपट ( Trial Balance )

तलपट एक निश्चित तिथि पर खातों के Closing Balance की एक सूची है |

  1. सारांश ( Summary )

Financial Statements के लिए Trial Balance को एक महत्वपूर्ण विवरणी माना जाता है क्योंकि यह सभी खातों के Closing Balance को दर्शाता है और Closing Balance को तैयार करने में भी सहायता करता है |

 

 

 

 

 

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